शब्द का वर्णन , शब्द ही जाने
प्रयत्नरत रहा , ‘’नील’’ निशब्द
वर्ण सुरो को डोर से बांधे
स्वर -व्यंजन मिल , बन गए शब्द
स्वयं में भाव समाहित करते
करून – कण बन जाते शब्द
अर्थ के सागर का मंथन कर
नित नए रूप में आते शब्द
विरह- वेदना के स्वर बनकर
मन भावुक कर जाते शब्द
थक कर हार चुके तन मन में
नव-जीवन भर जाते शब्द
कवि कल्पना को रह देते
मन की मधुर सरंचना शब्द
लेखक कलम पकड़ कर सोचे
भाव अनेकों गायब शब्द
क्रोध के विष में रंजित होकर
बाण विषैले बनते शब्द
घाव सूख गए काल -पटल पर
समय बीत गया रह गए शब्द
मधुर सुरों की लहरों पर जब
तैर तैर कर आते शब्द
तट पर जैसे छाप लहर की
मन पर यूं छप जाते शब्द
त्याजय सर्वथा है वह वाणी
जिसमें मिले कसैले शब्द
मन से मुख तक सभल संभल कर
तोल – तोल कर बोलें शब्द